अपने साथ बिताए कुछ समय, अपने सामर्थ्य और सुख को पहचाने

जीवन में कुछ ऐसा भी ढूंढिए जो बाहर कहीं नहीं मिलेगा और आप ही के भीतर समाया हुआ है। लेकिन इंसान की फितरत है कि जब भी ढूंढने का मौका आएगा, वह बाहर हाथ-पैर चलाता है। कबीरदासजी ने एक जगह लिखा है- ‘मोहि फिर फिर आवत हांसी। सुख स्वरूप होए सुख को ढूंढत, जल में मीन प्यासी’। पानी में रहकर मछली यदि प्यासी रह जाए तो इसमें पानी का क्या कसूर? इंसान अपने भीतर की खुशी, अपने भीतर का सामर्थ्य ढूंढ नहीं पाता और बाहर भाग रहा है। अपने निज स्वरूप का ज्ञान समय रहते कीजिए।


अब यह भी जीवन शैली में शामिल कर लीजिए कि इस नए संघर्ष के दौर में प्रतिदिन थोड़ा समय इस बात के लिए देंगे कि आप क्या हैं, यह जान सकें। इसके लिए थोड़ा शरीर को रोकिए। कमर सीधी रख, नेत्र बंद कर सांस के माध्यम से अपने ही भीतर प्रवेश कीजिए। शाश्वत शांति वहीं मिलेगी। हीरे को न पहचानकर, पत्थर मानकर उसके दुरुपयोग के हमारे यहां कई किस्से हैं। किसी को हीरा मिला, उसने पत्थर समझकर फेंक दिया तो किसी ने पशु के गले में बांध दिया। कुल मिलाकर उसका दुरुपयोग हुआ। संयोग से किसी जौहरी के हाथ लगा तब उन्हें पता चला हम कितनी बड़ी मूर्खता कर रहे थे। इस दौर में ऐसी गलती हम न कर जाएं। जीवन में कुछ ऐसी मौलिकताएं हैं जो हमें हीरे के रूप में मिली हैं। थोड़ा सा उतरिए शरीर रूपी उस खदान में जहां निजी प्रसन्नता और आनंद के रूप में आपका हीरा सलामत है..।